Monday, December 7, 2009

माया के किले में युवराज की सेंध


कल कांग्रेस के युवराज अम्बेडकर नगर (अकबरपुर) के दौरे पर आ रहे हैं यहाँ हम फिर से ऐसे किसी विवाद के लिए तैयार हैं जब वो किसी दलित के घर अपनी प्यास या भूक मिटाने जा सकते हैं और साथ ही राजनितिक पार्टिओं में बयान बाजी शुरू हो सकती है और मीडिया को खेलने के लिए एक मुद्दा मिलेगा और पूरा दिन इसी सब में निकल जायेगा लेकिन जनता से जुडी गंभीर खबर से हम सब महरूम रहेंगे.कल जब राहुल गाँधी अम्बेडकर नगर आएंगे तो एक तीर से कई निशाने साधने का प्रयास रहेगा एक तो ये जिला उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री और बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमों मायावती का जिला कहा जाता है जहाँ से वो कई बार सांसद रह चुकी हैं और यहाँ की पांचो विधानसभा सीटों पर बा.स.पा. कब्ज़ा है और पिछले लोक सभा चुनाव में स.पा. से इस लोक सभा सीट को भी छीन कर पुरे जिले में अपनी बादशाहत कायम कर ली.

सभी जानते हैं की इसी जिले से पूर्वांचल में बा.स.पा.ने अपनी धमक जमाई थी या यूँ कहें की ये बहुजन समाज पार्टी का एक मज़बूत किला है जिसमे सेंध मारी करने के पूरे मूड में होंगे राहुल गाँधी.उनकी मंशा होगी की यहाँ से जो आग लगे उसकी आंच सीधे 5 काली दास मार्ग को अपनी तपिश के आगोश में ले ले.और किसी न किसी तरह उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती को ऐसी बयानबाज़ी के लिए उकसाया जाय जिसके सीधे निशाने पर राहुल गाँधी हों. इसमें उत्तर प्रदेश शासन की फ़िज़ूल खर्ची और दलितों पर इस शासन काल में हुए उत्पीडन का प्रमुखता से जिक्र होगा और यहाँ मुस्लिम आबादी होने के नाते समाजवादी पार्टी पर भी भरपूर प्रहार की उम्मीद की जा सकती है.यहाँ बुनकरों की समस्याओं को भी एक हथियार के रूप में इस्तिमाल किया जा सकता है और अम्बेडकरनगर का पिछड़ापन आग में घी का काम करेगा कुल मिला कर कल का दिन सभी समाचार माध्यमो के लिए अच्छा गुजरेगा अभी ६ दिसंबर की खुमारी ख़त्म भी नहीं हुई थी की राहुल गाँधी का अम्बेडकर नगर दौरा मिल गया नहीं तो पता नहीं कहाँ कहाँ भटकना पड़ता ख़बरों के लिए.
लेकिन उत्तर प्रदेश की जनता से अगर कांग्रेस युवराज को बहोत सी उम्मीदें हैं तो शायद आने वाले विधान सभा चुनाओं में उसका जवाब भी उनको मिल जायेगा हम बात कर रहे हैं आम भारतीओं की और जब उत्तर प्रदेश की बात हो रही है तो हम बात करते हैं उत्तर भारतीओं की क्या राहुल जवाब देंगे की महाराष्ट्र में राज की गुंडा गर्दी क्यों नहीं रोकी जा रही है ? क्या वो जवाब देंगे की विकास की कितनी कीमत और चुकानी होगी गरीब जनता को ? क्या वो जवाब देंगे की विकास दर बढ़ाने के लिए करोंड़ों घरों का बजट उलट पलट कर क्यों रख दिया ? क्या वो जवाब देंगे की आज देश विकास के रास्ते आगे बढ़ रहा है या महंगाई भूक बदहाली कुपोषण की गिरफ्त में जा रहा है ?

अब निश्चित ही उत्तर प्रदेश तैयार हो रहा है जवाब देने के लिए अपने ऊपर किये गए हर ज़ुल्म का चाहे भा.जा.पा. की 'लड़ाओ और राज करो' की निति हो या 'स.पा. की डराओ और राज करो' की निति हो या 'बा.स.पा. की बांटों और राज करो' की निति इन सब से जनता ने सबक ले लिया है और रही बात कांग्रेस की तो 'लड़ाओ,डराओ,बांटो' की राजनीती अंग्रेजों से सीख कर ही आजाद भारत पर सबसे ज्यादा समय तक राज किया है और बाद में सभी क्षेत्रीय दलों ने इनमे से एक एक सबक आपस में बाँट लिया.अगर किसी को साफ़ दिखाई नहीं देता तो वो धुंधली आँखों से ही देख ले की इस बार फिर से सभी राजनितिक दलों को सरकार बनाने के लिए लोहे के चने चबाने पड़ेंगे.

Wednesday, November 25, 2009

अयोध्या 'सड़ी दाल में घी का तड़का'

बाबरी मस्जिद

इतनी हाय तोबा मचाने की ज़रूरत नहीं है जो होना था हो चूका है उसके बाद खून की गर्मी निकालने वाले गर्मी भी निकाल चुके हैं कानून बघारने वाले कानून बघार चुके हैं और नोट कमाने वाले नोट कमा रहे हैं वोट कमाने वाले वोट कमा रहे हैं रही बात मस्जिद या मंदिर की तो जब ईमान ही यहाँ मुर्दा है तो खुदा के घरों के होने या न होने की बात कोई मायने नहीं रखती 'मरी इंसानियत' को ढोते-ढोते हम बच्चे से जवान हो गए अब इतने सालों बाद फिर से वही खेल शुरू हुवा शायद अबकी बार हमारे जवानी के कंधे इसको बुढ़ापे तक ढोएंगे क्या करें आदत सी पड़ चुकी है जस्टिस लिब्राहन तो बेचारे फुटबाल बन गए मार्च १९९२ से लेकर अब तक जो भी सत्ता में आया अपने हिसाब से किक करता रहा है और अब देखिये बेचारे की ऐसी किरकिरी हुई की पूरी तरह से बुढ़ापा ख़राब हो गया लोग सवाल करते हैं की १६ साल ये जांच क्यूँ चली लेकिन किसी ने जाँच की रिपोर्ट जो ३ महीनो में देनी थी जब पूरी नहीं हुई तो सरकार से सवाल क्यूँ नहीं किया क्यूँ पंजे वाली सरकार को कटघरे में नहीं खड़ा किया या उसके बाद कमल वालों को क्यूँ नहीं जाँच पूरी करने के लिए बोले सीधी सी बात है हर कोई अपनी अपनी रोटियां सेंक रहा था अब जब सब कुछ भुला कर लोग फिर से देश और विकास की बात करने लगे हैं तो फिर से वही सब शुरू किया जा रहा है और इसको शुरू करने में देश को खोखला करने वाले सबसे बड़े दल ने फिर से पहेल की है जब रिपोर्ट मिल चुकी थी तो उसको संसद में पेश करने के बजाये हमेशा की तरह संसद के बाहर ही बहस शुरू कर दी इसके पीछे क्या है किसी से छुपा नहीं अब देखना है की अयोध्या को फिर से अशांत करने की कोशिश कितना रंग लाती है और मुर्दा हो चुके तथाकथित देशभक्त संगठनों को संजीवनी देने वाला ये काम देश को फिर से कितने पीछे धकेलता है कितने घोटाले इसके पीछे दबे रह जायेंगे कितने भ्रष्टाचारी आसानी से जनता की आँखों के सामने से निकल जायेंगे लेकिन हमें इनसे क्या मतलब हमको फिर से मौका जो मिलेगा अपनी अपनी रोटियां सेंकने का,
यहाँ कौन नहीं जनता की न मंदिर बनने वाला है न ही मस्जिद क्यूंकि जैसे ही इनमे से कुछ भी बना सब पहले जैसा हो जायेगा और इन राजनितिक दलों के चकलाघरों में चढ़ावा आना बंद हो जायेगा ये ऐसा कभी नहीं होने देंगे बस सवा अरब आबादी में से चंद हज़ार इनके दिखाए रास्ते पर चलके कटते मरते रहेंगे और पूरे देश को अशांत किये रहेंगे.........,
क्या कोई ये भी जानना चाहेगा की अयोध्या को क्या चाहिए क्या किसी ने अयोध्या के मर्म को भी समझने की कोशिश की है क्या आस्था के नाम पर धर्म को पैरों तले रौंदती ये अंधों की भीड़ कभी ये समझ पायेगी की उसने शांत,शीतल, पवित्र अयोध्या को पूरे संसार में किस रूप में प्रचारित कर दिया है अपने ही देश में अपने ही लोगों के बीच अयोध्या असुरक्षित सी है सिसकती सी डरी सहमी सी अयोध्या अपनों के लहू से लहू-लुहान अपनों के दिए ज़ख्मो को नासूर बनते ख़ामोशी से देख रही है आखिर अपनी व्यथा सुनाये भी तो किसको यहाँ तो हर तरफ व्यापारी घूम रहे हैं जिनका धर्म बस एक है धन और सिर्फ धन.......शायद अब पहेल करने की बारी हम सभी की है अयोध्या को इन व्यापारियों से आजाद कराने की......

आपका हमवतन भाई ...गुफरान सिद्दीकी (अवध पीपुल्स फोरम अयोध्या,फैजाबाद)

Saturday, November 21, 2009

बड़े बेआबरू होकर इस कुचे से हम निकलें......


मुलायम मुलायम हो गए साईकिल का कल्याण होते होते अस्थि पंजर ही ढीले हो गए कभी लोग कहते थे की सपा मुलायम है , फिर बोले सपा अमर है फिर सुना की सपा का कल्याण हो गया, अब राज के चक्कर में किरकिरी के बाद फिर पुराने ढर्रे पर आने की कोशिश शुरू हो रही है, और कमल वाले विनय का अनुनय शुरू हो चूका है की अब हमारा भी कल्याण कर दो अब देखना ये बाकी है की पहले जैसे कमल को कीचड़ से निकाल कर कल्याण करते हैं या फिर सपा का सूपड़ा साफ़ होते ही कल्याण को खुद कल्याण की ज़रूरत पड़ती है,जहाँ तक साईकिल वाली फैक्ट्री के नए कर्ता-धर्ता की बात है तो अखिलेश के डिम्पल गायब हो चुके हैं और उनकी फैक्ट्री को अब इंधन की ज़रूरत है जो अब मिलने की सम्भावना कम ही दिखती है वजह साफ़ है साईकिल फैक्ट्री को इंधन सप्लाई करने वाले जो भी थे उनमे से ज्यादा तर हाथी पर घूम रहे हैं और दो बड़े सप्लायर दिल्ली वाली मैडम जी को इंधन सप्लाई कर रहे हैं जहाँ तक रामपुर वाले की बात है तो उन्होंने सप्लाई की लाइन ही काट रक्खी है और बाकी का काम 'दस जनपथ' वाले युवराज ने कर दिया ऐसा पंजा जमाया की अब उसको हिलाना ही मुश्किल हो रहा है तो सवाल ये उठता है की अब जब साईकिल वाली फैक्ट्री के घर के प्रोडक्ट जनता ने नकार दिए हैं तो अब साईकिल को खरीदेगा कौन ॥?जहाँ तक कमल की बात है तो जब तक ये अटल थे तब तक तो ठीक रहा लेकिन फिर इनके लाल ने सीमा पार से जिन्न को बहार निकाल लिया उससे पीछा छुटा तो उमा ने लपेट लिया उससे छुटकारा मिला तो स्वराज ने चिंता बढ़ा दी उधर शेखावत जी अलग उलझाये हुए थे इन सबसे किसी तरह छुटकारा मिला तो यश का जिन्न बहार आ गया उससे निपटे तो राजे के तेवर गरम हो चुके थे कुल मिला कर राज के तो जैसे नाथ ही रूठ गए हो, अब देखना है की मुलायम की फैक्ट्री कौन सा अजूबा निकाल कर लाती है जिससे की पुराने ग्राहक फिर से वापस आ जाये.....
अवध पीपुल्स फॉरम (अयोध्या ,फैजाबाद)

Sunday, October 25, 2009

युवा शक्ति.....या सिर्फ़ इंधन...


आखिर है क्या ये युवा शक्ति आज़ादी के बाद से ही ये नारा राजनितिक दलों का मुख्या अस्त्र रहा है आज़ादी की लडाई में युवा वर्ग के योगदान को कोई महत्त्व नहीं दिया गया आज़ादी की लडाई का सारा श्रेय लेने वाले आज देश के प्रमुख रानीतिक घराने हैं आखिर देखते देखते ऐसा क्या हुवा की आज युवा ह्रदय सम्राट, युवराज के संबोधन में सुसज्जित राजनितिक पार्टी प्रमुख के पुत्र पुत्रियाँ जनता के बीच अपना जलवा बनाने में लगे हैं क्यूँ आज युवा वर्ग को इतना महत्त्व दिया जा रहा है जबकि आज़ादी के बाद से ही हाशिये पर डाल दिया गया ये वर्ग देश का सबसे उपेक्षित वर्ग रहा है राजनितिक दलों की जो मंशा रही और उन्होंने जो दुष्प्रचार किया उसका पूरा श्रेय मीडिया को ही जाता है जनसँख्या विस्फोट को औजार की तरह इस्तेमाल किया गया संसाधनों की कमी का रोना रोया गया और आम देशवासी अपने आप को कोसता रहा की इतने बच्चे क्यों पैदा किये अब क्या कर सकते हैं कमी हमारी ही रही सरकार इसमें क्या कर सकती है लेकिन सरकार चलाने वाले राजनितिक दलों से लेकर नौकरशाहों तक के राजसी ठाठ बाट की तरफ किसी का ध्यान नहीं गया और जिसका गया भी तो उसका मुह या तो भर दिया गया या बंद कर दिया गया इसके बहोत से उदाहरण है. युवा वर्ग ने जब भी अपनी उपेक्षा का विरोध किया उसको इस तरह कुचला गया की वो आज अपनी हक की लडाई लड़ने से ही कतराने लगा उसका परिणाम ये निकला की इस युवा शक्ति का फायदा ऐसे राजनितिक दलों ने उठाना शुरू किया जो धर्म जाती और क्षेत्रवाद के नाम पर आम लोगों का खून चूस रहे थे और सरकार में ऐसे लोगों को ख़ास की पदवी दी गयी थी लेकिन देखते ही देखते ये स्थिति विस्फोटक हो गयी और अब सरकार इसके सफाए का प्रयास कर रही है लेकिन इस समस्या की मूल जड़ अपनी जगह बरक़रार है भारत जैसे देश में संसाधनों का रोना रोने वाले खरबों में घोटाला करते हैं कोई प्रदेश का आधा बजट खा जाता है तो कोई नोटों पर सोता है और इसके बाद भी अगर युवा वर्ग के लिए सरकार के पास कुछ भी नहीं है तो राजनितिक दल उनसे ये उम्मीद क्यूँ पाले हुए हैं की वो उनके पक्ष में लामबंद होंगे.बात राहुल गाँधी की हो या किसी की भी सिर्फ दलित या गरीब के घर रात बिताने से या उनके घर खाना खाने को भले ही रानीति नहीं समाजसेवा प्रायोजित किया जाता हो लेकिन उसकी चर्चा जिस तरह पुरे देश में कराइ जाती है उससे काफी हद तक तस्वीर साफ़ हो जाती है की ये लोग आज भी देश के युवा वर्ग को अपनी पार्टी के इंधन से ज्यादा कोई महत्व नहीं देते हैं.अगर देते तो आज राहुल गाँधी की जगह कोई गैर नेहरु होता या अखिलेश की जगह कोई गैर यादव होता. लेकिन हम भी अब तैयार है इनके मुह पर जूता मारने के लिए अब देश का आम युवा ही कल का भविष्य होगा ............जय हिंद.

आपका हमवतन भाई ...गुफरान सिद्दीकी (अवध पीपुल्स फोरम फैजाबाद,अयोध्या)

Thursday, October 15, 2009

अंधकार का दीपोत्सव..प्रकाश




शुभ दीपावली
आइये हम सभी मिल कर इस दीपावली में हर उस घर में दिया जलाएं जहाँ सदिओं से अँधेरा है ये एक प्रयास होगा अंधेरों में रहने वाले उन मासूमों के लिए जिनकी तरफ जवाबदेही से हम बचते रहते हैं लेकिन कब तक बचेंगे ये कोई नहीं जानता.आज हर कोई दीपोत्सव के प्रकाश में सब कुछ भूल जाना चाहता है पर वास्तव प्रकाश कुछ देर के लिए ही होता है और फिर अंधकार हम सभी को अपने आगोश में लेने के लिए मचलने लगता है. मै हमेशा सोचता था की दिवाली वास्तव में उस अंधकार पर विजय का त्यौहार है जिस पर हमेशा के लिए विजय हो चुकी है लेकिन अब देखता हूँ तो वही अंधकार हर दिशा में फैलता जा रहा है और हम अपनी आंखे बंद करके ये सोचते हैं की अभी प्रकाश बाकि है लेकिन जो जा रहा है उसको बचाने के लिए कोई प्रयास नहीं करते शायद हम कल नहीं देख रहे हैं आने वाला वक़्त जब हमसे प्रश्न करेगा तब हम क्या उत्तर देंगे ये सोचना कोई नहीं चाहता.लेकिन जवाबदेही तो सभी की है.क्या ये नहीं हो सकता की हम इस अंधकार में जी रहे उन मासूमो को रौशनी दिखाने का प्रयास करें जिनके लिए शिक्षा का कोई महत्त्व नहीं या यूँ कहें की वो शिक्षा के महत्व को ही नहीं जानते अगर ऐसा है तो ये ज़िम्मेदारी हमसभी की है की उनको शिक्षित करने के लिए जो भी हो सकता है अपने स्टार से ज़रूर करें शायद यही हम सभी सच्ची दिवाली होगी !
आप सभी को दीपोत्सव की हार्दिक शुभकामनायें !
आपका हमवतन भाई ..गुफरान सिद्दीकी (अवध पीपुल्स फोरम फैजाबाद)

Thursday, September 17, 2009

मेरी ईद

सोचता हूँ की इस ईद पर क्या करूँ
बेरोज़गारी की जेब से कैसे खर्च करूँ,
कुछ देर लिखता हूँ फिर रुक जाता हूँ
सोचता की इस ईद पर क्या करूँ,
ख़ुशी भी अजीब सी लगती है ईद की
लाशों ढेरों से लिपटा मेरा देश है,
आँखों से अश्क नहीं टपकता लहू है
हर किसी के हाथ में कफ़न है दोस्तों,
अजीब सा मंज़र है हर किसी दिल का
हर किसी के चेहरे पे एक खौफ सा है,
सोचता हूँ की इस ईद पर क्या करूँ
बेरोज़गारी की जेब से कैसे खर्च करूँ,

आपका हमवतन भाई ,,गुफरान (अवध पीपुल्स फोरम फैजाबाद),

Monday, August 17, 2009

किसकी अयोध्या..............!

अयोध्या
मेरे नाम का अलग अलग मतलब निकालने वालों मेरी भी पुकार को सुनो मेरे रक्तरंजित ह्रदय से नकलने वाली वाली पीडा क्या तुमको सुनाई नहीं देती मेरी माटी में जन्मे और मेरी गोद में सोये हुए शांति के दूत तुमको दिखाई नहीं देते मेरी गोद में बढे पुरषोत्तम राम हो या महावीर स्वामी या फिर शीश अलाह्सलाम हों या फिर स्वयं भगवान् की उपाधि पाने वाले बुद्ध इन सबको मै ही क्यों रास आई आखिर क्या था मेरे अन्दर की संसार के कोने कोने से शांति पाने के लिए लोग मेरी आंचल की छावं में आते गए और मुझे महानता की उचाइयों पर पहुंचा दिया.सारा संसार मेरी आंचल की छावं में मुझे लगने लगा साफ़ शफ्फाक आंचल जिसमे गुनाह यूँ धुल जाया करते की मानो कोई माँ अपने नन्हे से बच्चे की गन्दगी अपने आंचल से साफ़ करके उसे पवित्र कर देती हो.मुझे याद नहीं मैंने कब किसी से भेदभाव किया या किसी से अपनी माटी का मोल माँगा जो भी आया मैंने उसको माँ बनकर अपनी गोद में समेट लिया उनके दुःख दर्द को अपना लिया मेरे घर के आंगन में इश्वर, पवित्रता का पाठ पढने वाले ज्ञानी सन्यासी संसार को शांति का सन्देश देने वाले सूफी महात्माओं को भेजा और सभी मिलकर मुझे संसार में एक अलग पहचान देते रहे.....फिर ऐसा क्या हुवा की मेरे बच्चे मेरी छावं से अलग जाने लगे और मुझे संसार में पवित्रता की ऊँचाइयों से निचे घसीटते से प्रतीत हुए मेरे स्वभाव में आज भी वही अपनापन लेकिन आज मेरा आंचल मुझे रक्तरंजित सा दिखाई देता है जिसमे न जाने मेरे कितने बच्चों का लहू लगा हुवा है आज मुझे अपना कहने वाले अलग अलग पंक्तियों में खड़े हैं सब ही मेरे बच्चे हैं लेकिन सब साथ मिल कर मुझे नहीं अपना रहे.........सिर्फ अपना हक जताने के लिए खून की होलियाँ खेल रहे बच्चों को देख कर मुझे रोना आता है अब संसार में मेरी पहचान साम्प्रादायिक बन कर रह गयी है मेरा नाम आते ही लोगों के ज़हन में मेरा स्वरुप एक ऐसी अयोध्या के रूप में बनता है जहाँ इन्सानिअत का कत्ल हो चूका है.....और मेरे नाम का व्यापार हो रहा है..

Monday, June 1, 2009

कुछ तो मजबूरियां रही होंगी

कुछ तो मजबूरियां रही होंगी
यूँही नहीं हुए सनम बेवफा,

जी हाँ कल तक एक दुसरे को औकात बताने वाले नेता ऐसा क्या हुवा की दोनों गलबहियां करे घूम रहे
हैं, कल्याण सिंह का तो समझ में आया की जिस भारतीय जनता पार्टी में उनकी नंबर दो की औकात थी उनको हाशिये पर दाल दिया गया जिससे खिन्न होकर वो उसकी जड़ काटने में जुट गए जैसा राजनीति में होता रहता है लेकिन ये समझ नहीं आया पिछली बार की तरह इस बार भी मुलायम ने कल्याण को सहारा क्यों दिया इतना बड़ा खतरा क्यों उठाया जबकि उनको पता था की एक बार मुस्लमान उनका साथ दे चुके थे लेकिन गद्दारी कल्याण सिंह ने की और फिर अपने पुराने घर लौट गए थे लेकिन इस बार क्या मुलायम सिंह को नहीं पता था की उनका वोटर उनकी समाजवादी (अमरवादी) सोच से खिन्न है फिर उन्होंने इतना आत्मघाती फैसला क्यों किया और तो और अपने कई दिग्गज लड़ाकों से हाथ धो बैठे इतना ही नहीं जब से अमरसिंह नाम का भूत उनपर चढा है तब से समाजवादी नेता वैसे भी मुलायम से दूरियां बढाते जा रहे हैं और तो और इस सबके चलते अपने सबसे चहेते और समाजवादी पार्टी के संस्थापक सदस्य रहे आज़म खां से भी हाथ धो बैठे, खैर अब मुद्दे पर आते हैं उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह ने नब्बे के दशक में राममंदिर आन्दोलनकारियों पर गोली चलवा कर जिस तरह से अपनी पैठ मुस्लिमों में बनायीं उसी तरह भारतीय जनता पार्टी जो की अपनी अंतिम सांसे गिन रही थी को संजीवनी देदी और पुरे भारत में संघियों ने भारतीय जनता पार्टी के माध्यम ऐसा प्रचार किया की जैसे अयोध्या में जो कुछ भी हुवा है वो मुसलमानों ने ही किया है और देश की भोली जनता जस्बातों में बह गयी, मै कहना सिर्फ इतना चाहता हूँ की क्या मुलायम और कल्याण की दोस्ती उस वक़्त नहीं थी ....? जी बिलकुल थी और ये एक सोची समझी रणनीति का हिस्सा था वहां गोली चलवा कर दोनों अपना अपना हित साध रहे थे और फिर दोनों ही सत्ता में बन्दर बाट करते रहे लेकिन खेल बिगडा बहेन जी के आने से और ऐसा चौपट हुवा की दोनों को अपना अंत नज़र आने लगा तो फिर तय यही हुवा की वक़्त आ चूका है की अब पर्दा उठा दिया जाये और खुल कर मिल कर नोच घसोठ की जाये लेकिन जनता ने इस बार ऐसा करारा तमाचा मारा की बोलती बंद हो गयी और रही बात राजनीति की तो उत्तर प्रदेश से अब दलालों की राजनीति ख़त्म होने की कगार पर है.
आपका हमवतन भाई........गुफरान.....अवध पीपुल्स फोरम फैजाबाद

Wednesday, May 27, 2009

किस ओर बढ रहा है देश...........,

एकांत में जब कभी देश के विषय में सोचता हूँ तो काफी परेशान हो जाता हूँ जब हम सरकार के आंकडों से इतर देश देखते हैं तो ज़मीन असमान का फर्क नज़र आता है एक तरफ देश विकास की और अग्रसर है तो दूसरी तरफ की हकीक़त कुछ और ही है तेज़ रफ्तार अर्थयुग है तो यहीं भूक और कर्जे से मरने वाले किसान भी हैं कोई छमाही खरबों में कमाता है तो किसी को साल में ३६५ दिन भोजन मिल जाय तो यही बहोत है एक तरफ सैकडों रुपये का फास्ट फ़ूड खाने वाले हैं तो दूसरी तरफ कुपोसड का शिकार बच्चों से लेकर बूढे तक हैं. एक तरफ उच्च शिक्षा के नाम पर लाखों की डिग्रियां खरीदने वाले हैं तो दूसरी तरफ २० रुपये महीना फीस भी नहीं हो पाती की बच्चों को पढाया जा सके एक तरफ शिक्षा का बाजारीकरण है तो दूसरी तरफ सरकारी शिक्षा के नाम पर कालाबाजारी है एक तरफ आरक्षण है नीलाम होती नौकरियां है तो दूसरी तरफ बेरोजगारों की बढती फौज है एक तरफ शोषण है अत्याचार है घूसखोरी है भ्रष्टाचार है तो दूसरी तरफ मरते हुए ईमानदार मेहनतकश हैं आत्महत्या को मजबूर किसान और भुकमरी की कगार पर इनके परिवार और लाचार जनता एक तरफ देश का लोकतंत्र है तो दूसरी तरफ उसका चीरहरण करने वाले राजनितिक दल हैं एक तरफ देश का संविधान है तो दूसरी तरफ उसकी जडों में बैठे ज़हरीले सांप हैं एक तरफ देश का आपसी विशवास है भाईचारा है तो दूसरी तरफ देश के अन्दर ही उसको तार तार करने वाले सांप्रदायिक समूह हैं एक तरफ देश के लिए मरते हुए जवान हैं तो दूसरी तरफ देश के अन्दर लड़ते हुए हिन्दू मुस्लमान हैं एक तरफ बापू का गांधीवाद है तो दूसरी तरफ माओ का माओवाद, आतंकवाद और नक्सलवाद एक तरफ भारतीयता है तो दूसरी तरफ मराठी, बंगाली, तमिल, गुजरती, असमी,और न जाने कौन कौन हैं.......................देश तो आगे बढ रहा है लेकिन किस ओर समझना बहोत मुश्किल है .................
आपका हमवतन भाई ...गुफरान....अवध पीपुल्स फोरम..फैजाबाद...

Friday, May 1, 2009

भारत को खंड खंड करते यहाँ के वासी..................,

जनाब अगर आप किसी भी मुल्क में जाओ और वहां के बाशिंदों से सवाल करो आप कहाँ से हैं तो उसका जवाब होगा .....अमेरिका वाला बोलेगा मैं अमेरिकन हूँ अफ्रीकी बोलेगा अफ्रीकन हूँ अरब बोलेगा अरबी हूँ नेपाली बोलेगा नेपाली हूँ ,,,,,,लेकिन हम जब अपने देश में सवाल करते हैं तो यहाँ हिन्दुस्तानी छोड़ कर सब मिल जाते हैं कोई पंजाबी होता है, कोई मराठी होता है, कोई बंगाली होता है, तो कोई तमिल लेकिन कोई भी हिन्दुस्तानी नहीं होता है आखिर गलती कहाँ की गयी की हम क्षेत्रवाद को देश से ज्यादा महत्व देने लगे क्या किसी ने कभी इस विषय में सोचा या किसी ने इसके लिए कोई ठोस पहेल की शायद ये हिन्दोस्तान का दुर्भाग्य है की आज़ादी की लडाई में जब हमारे हिन्दुस्तानी भाई अपने मुल्क के लिए जाने दे रहे थे तो उनके लिए क्षेत्रवाद नहीं अपना देश प्यारा था यहाँ हिन्दू मुस्लिम सिख इसाई बोलने वाला कोई नहीं था सब भारतीय थे लेकिन आज़ादी मिलने के बाद यहाँ शुरू हुवा लोकतंत्र की खरीद फरोक्त का खेल पहले एक नारा आया हिन्दू मुस्लिम सिख इसाई आपस में हैं भाई भाई .....यहीं से शुरू हुवा इन राजनितिक दलालों का खेल इन्होने सबसे पहले ऐसे सन्देश बनाये की लोगों को ये एहसास हो की भारत अब आजाद हो चूका है और यहाँ अलग अलग धर्मो के मानने वाले रहते हैं जिनका रहेन सहेन सब अलग हैं और ये एक दुसरे के साथ नहीं रह सकते हम इनको साथ रहना सिखायेंगे और फिर हर धर्म का दलाल अपने आप को उस कौम का नेता बताने लगा और फिर शुरू हुवा अधिकार दिलाने के नाम पर आपसी भाईचारे को बीच बाज़ार नंगा करने का खेल यहाँ तक तो फिर भी ठीक था लेकिन जब राजनीति ने व्यवसाय का रूप लेना शुरू किया तो इन दलालों को अपनी कौम को बेचने में मोती कमी होने लगी और फिर शुरू हुवे सांप्रदायिक दंगे आज तक इन दंगों में इन दलालों का कोई भी करीबी नहीं मारा गया न ही इनकी संपत्ति का कोई नुकास्सन ही हुवा मारा कौन गया बर्बाद कौन हुवा बताने की ज़रूरत नहीं और आज देखिये हम किस जगह खड़े हैं हम दावे करते हैं की हम जल्द ही विकसित राष्ट्र बन जायेंगे लेकिन कैसे कोई बताने को तैयार नहीं हमारे देश में लोग क्षेत्रवाद की बातें करते हैं अपने राज्य से बाहरी (दुसरे राज्य) से आये हुवे लोगों को मार मार कर भागाते हैं क्यूँ क्या वो हिन्दुस्तानी हैं या फिर वो राज्य अपने आप को एक अलग देश साबित करने पर तुला है! वास्तव में ये एक ऐसी समस्या है जिसका वक़्त रहते इलाज नहीं किया गया तो शायद अखंड भारत कहने वाले लोग ही भारत को खंड खंड करने में सबसे आगे होंगे और बदनाम होंगे कुछ खास तबके के लोग .....अभी हमें लगता है की देश आगे जा रहा है लेकिन कहाँ सही जवाब कोई देना नहीं चाहता हमारे किसान खुदकुशी कर रहे हैं, हमारे नवजवान नक्सली आतंकवादी बन रहे हैं , सरकारी तंत्र रिश्वत खोरों और भरष्ट लोगों के आगे नतमस्तक है , और सर्कार चलाने वाले अपने ही देशवासिओं के लहू से अपने धन के बगीचों को सींच रहे हैं तो साथियों हम कहाँ विकसित राष्ट्र बनने के रस्ते पर हैं...?

Wednesday, March 25, 2009

शहादत दिवस और देशवासी......

साथियों एक शहादत दिवस और निकल गया मै बात कर रहा हूँ अपने शहीदे आज़म सरदार भगत सिंह की लेकिन हमारे देश की मीडिया को इतनी फुर्सत कहाँ की वो इन शहीदों को श्रधांजलि दे सके वो तो टाटा का सपना छापने में लगे रहे और जो दिखाने का काम करते हैं वो दिखाते रहे और इनको शहीद दिवस से क्या लेना देना जब जनता ही अपने शहीदों याद नहीं करना चाहती तो भला प्रेस क्यों अपनी जेब इनकी वजह से हलकी होने दे जितना पैसा टाटा की नैनो दे रही है उसका प्रचार करने में उतना ये शहीद कहाँ से देंगे और इनको मरने के बाद खबर बनने की क्या ज़रूरत है वैसे भी जितना सम्मान भ्रष्ट नेता समाजसेवियों मिलना चाहिए वो तो उनको मिल ही रहा है और देश के लूट घसोट में जितना सहयोग ये बिरादरी करती है उतना कौन करता है इस लिए शहीदों की खबर बना कर क्या इनसे पंगा लेना है और अब जब बापू को भी वरुण जैसे ऐरे गैरे गरिया सकते हैं और मीडिया उनको छाप और दिखा कर माल बना रही है तो इन देश भक्तों को को दिखा कर क्यों मज़ा किरकिरा किया जाये वैसे भी अंधी गूंगी जनता को मसाला मिलना चाहिए चाय और पान की दुकानों पर खड़े हो कर चर्चा करने के लिए उनको इससे क्या मतलब की अतीत में उनके लिए कितनो ने गोलियां खाई कितने फँसी पर झूल गए कितने जिंदा दफ़न हो गए अब देशवासी नेताओं में सबसे भ्रष्ट कौन है कौन देश बेच रहा है ऐसे लोगों को पसंद करने लगे हैं जिनको मीडिया फायर ब्रांड कहता है और यही सेल देश को नफरत की आग में झोक रहे हैं तो दोस्तों कहाँ हमें शहीद दिवस की याद होगी........................
आपका हमवतन भाई ...गुफरान.........अवध पीपुल्स फोरम फैजाबाद.

Saturday, March 21, 2009

लोकतंत्र के पशुबज़ार में स्वागत है.......

विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र में लगने वाले पशु बाज़ार में आपका स्वागत है, यही एक ऐसा लोक तंत्र है जहाँ जनता पशुवों की मानसिकता की है जिनके भाग्य का फैसला हमारे देश के बड़े उद्योगपति करते हैं और ये पशुबज़ार के खरीदार राजनितिक दल इन्ही उद्योगपतियों से चंदा लेकर जनता के वोट की बोली लगाते हैं और जनता भी पशुवों की भांति उनसे भी कम दामों में बिकती रहती है और फिर उन्ही खरीदारों के हांथो जुतियाई भी जाति है पहले ये अपने पशु होने का सबूत देते हैं जब वोट करते हैं तो देश,विकास,बेरोजगारी,शिक्षा,स्वास्थ जो की इनका अधिकार है के विषय में नहीं सोचते तब जाति, धर्म और क्षेत्रवाद जैसे मुद्दों पर ये वोट करते हैं लेकिन जैसे ही सरकार बनती है और जनता के डंडा करना शुरू करती है इनकी इंसानियत जाग जाति है और ये घडियाली आंसू बहाना शुरू कर देते हैं और एक दुसरे को कोसना शुरू कर देते हैं और शुरू होता है आन्दोलन और धरनों का दौर इसमें ये किसी और का नहीं अपना खुद का नुकसान करते रहते हैं लेकिन इससे सबक न सीखते हुए फिर जब चुनाव निकट आने लगता है ये देश विकास समाज सब भुला कर अपने पशुत्व पर लौट जाते हैं और जब इनके सामने कोई ऐसा व्यक्ति चुनाव में ताल ठोकता है जिसके पास सिर्फ कर्म है सत्यता है कर्मठता है तो यही लोग उसे मुर्ख समझ कर उस पर हंसते उसकी जमानत जप्त करते हैं और गुंडों के भ्रष्ताचारिओं के पिछलग्गू बने उनकी जय जय कार करने में ही अपना सर गर्व से ऊँचा रखते हैं तो कुकुरमुत्तों की भांति क्यों ना इस देश में राजनितिक दल हों। जब जाति,धर्म,क्षेत्र के नाम पर जनता वोट करेगी तो पार्टियाँ भी इसी आधार पर बनेगी और पशुबज़ार में खरीदार भी बढ़ेंगे लेकिन इसके बदले जनता को क्या मिलता है ये सवाल ज़रूर एक बेहतर मुद्दा हो सकता है..........,

आपका हमवतन भाई ....गुफरान.....अवध पीपुल्स फॉरम फैजाबाद.

Sunday, March 8, 2009

नारी दिवस पर विशेष...........?

औरत देवी है माँ है बहेन है बेटी है पत्नी है और भी न जाने क्या क्या रूप हैं लेकिन हमारे समाज में क्या ये सुरक्षित हैं हम क्यों नहीं इनको बराबरी का दर्जा देते हैं.? अत्याचार करते हैं, हवस का शिकार बनाते हैं, खरीद फरोक्त तक करतें हैं.? इनकी और कहने को ये हमारे धर्म में देवी का स्थान रखतीं है या यूँ कहें की एक माँ (औरत) के क़दमों के नीचे जन्नत है ये भी ईश्वरीय वाणी है फिर क्यों ये पैदा होते ही मार दी जाती हैं.? क्यों ये जलाई जाती हैं.? शिक्षा से महरूम रहती हैं.? क्यों इनको बराबरी का दर्जा देने के लिए हम आना कानी करते हैं.? इसके पीछे क्या है..? ऐसे बहोत से सवाल हजारों लाखों के दिलो में उठते होंगे लेकिन जवाब शायद किसी के पास नहीं या यूँ कहें की जवाब कभी खोजने की कोशिश ही नहीं की आखिर करते भी तो कैसे कई पीदियों से जिस परंपरा का निर्वहन हम करते आ रहे हैं उसमे इन सवालों के लिए ही गुंजाईश नहीं थी तो जवाब का सवाल ही नहीं पैदा होता लेकिन अब वक़्त के साथ इन्होने चलना सीख लिया है. अगर हम कुछ अपवाद छोड़ दें तो इतिहास गवाह है सैकडों सालों से जो परंपरा चली आ रही थी उसे खुद औरतों ने ही अपने बूते तोडा है लेकिन अब हम सभी को इनके अधिकारों की अनदेखी बंद करनी होगी और औरतों को समाज में अपने से बेहतर दर्जा देना होगा आखिर यही देवी है यही माँ है यही बहन है यही अर्धांग्नी है.और जन्नत का रास्ता इन्ही (माँ) के पैरों के नीचे है.लिखना तो बहोत कुछ था लेकिन समय कम ही इस लिए यहीं बंद कर रहा हूँ इंशा अल्लाह बाद में मुकम्मल करूँगा.आपका हमवतन भाई गुफरान........अवध पीपुल्स फोरम फैजाबाद

Saturday, January 24, 2009

अरे भाई ये सुभाष चंद्र बोस कौन है...........!

अरे भाई ये सुभाष चंद्र बोस कौन है कुछ सुना सुना नाम लग रहा है! हाँ याद आया बचपन में गुरु जी ने हम लोगों की किताब में कोई कहानी पढाई थी कोई था देश के लिए बहोत बड़ी कोई सेना बनाने वाला क्या नाम था सेना का ..........हाँ 'आजाद हिंद फौज' आज अख़बारों के माध्यम से पता चला की उनकी जन्मशती है वो भी किसी भी राष्ट्रीय अखबार के मुख्या पृष्ठ पर नही बल्कि बीच के पन्ने पर छोटा सा दिया हुवा था ! अब ये कोई राज नेता तो हैं नही की बहेनजी , भाई साहब , चाचा फलाने , काका फलाने, अम्मा , बाबु जी , साहब और भई न जाने क्या क्या नाम होते हैं जब इन नेताओं का जन्मदिन होता है और पुरा प्रदेश , देश इनकी जय जय कार करते हैं और हमारे खबरिया माध्यम पुरा दिन टी.वी.पर इनको दिखाते रहते हैं और अखबार उनकी जय जय कार से पटे पड़े रहते हैं !ऐसे में हमको ऐसे आदमी को याद करने से क्या मिलेगा जिसको हमारी अपनी सरकार ने कभी देश भक्त मानने से इनकार कर दिया था और पता नही कहाँ उन्होंने अपनी जीवन की अन्तिम सांसे ली !
कुछ लोग कहते हैं की फैजाबाद में गुमनामी बाबा की समाधी उन्ही की है सो हम भी आज के दिन कुछ पलों के लिए वहां चहेल कदमी कर आए और लगे हाथ कुछ बात चीत भी कर ली गुमनामी बाबा से लेकिन बाबा जी ने मुझे कोई जवाब नही दिया हाँ वापसी पर अलबत उस समाधी से आवाज़ आई की अबे नालायक तू क्यों मेरी चिंता में घुला जा रहा है जब मेरे देश ने ही मुझे भुला दिया तो तू तो अभी ठीक से देशवासी भी नही हो पाया है ! जा पहले इन तथा कथित देश भक्तों से नेताओं से देशवासी होने का पहचान पत्र ले कर आ फ़िर मुझसे बात करना और हाँ रात के अंधेरे में ही आना नही तो तेरा भी सौदा कर दिया जाएगा और फ़िर तुझे भी मरने से पहले यूँ ही गुमनामी की ज़िन्दगी बितानी होगी और मरने के बाद भी सरकार ही घोषित करेगी की तू है कौन और वो भी १००-२०० सालों की जाँच करने के बाद.........,,ये वो नेता जी थे जिनको शायद हम सभी भुला चुके हैं और चिरकुट सरकारी मदद लेने वाले क्रांतिकारियों से भी गया गुजरा समझते हैं.....................,,,,,,,,,,,,