Tuesday, July 6, 2010
शहर-ए-अमन
अजीब मंज़र है
शहर-ए-अमन का,
जब होता है दर्द
ग़ज़ल कहते हैं,
ये हमारी ख़ामोशी
कमजोरी नहीं बेसबब,
हमें शोलों को लफ़्ज़ों में
पिरोने का हुनर आता है !
Newer Posts
Older Posts
Home
Subscribe to:
Posts (Atom)