Tuesday, July 6, 2010

शहर-ए-अमन

अजीब मंज़र है
शहर-ए-अमन का,
जब होता है दर्द
ग़ज़ल कहते हैं,
ये हमारी ख़ामोशी
कमजोरी नहीं बेसबब,
हमें शोलों को लफ़्ज़ों में
पिरोने का हुनर आता है !

5 comments:

Shah Nawaz said...

बहुत ही बेहतरीन, बहुत खूब!

गुफरान सिद्दीकी said...

suman ji,shah nawaz bhai shuqriya

SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR5 said...

गुफरान भाई बहुत सुन्दर रचना ..हमें शोलों को लफ्जों .....आप के शब्द साहित्य के खुशनुमा मंजर हैं ...शुभकामनाएं ....मानव और मानवता का ध्यान रखना हमारा फर्ज है . .... ..आप का स्वागत है आइये बाल झरोखा सत्यम की दुनिया व् अन्य पर भी
शुक्ल भ्रमर ५

Madan Mohan Saxena said...

आपकी कविता में भावों की गहनता व प्रवाह के साथ भाषा का सौन्दर्य भी है .उम्दा पंक्तियाँ .

गुफरान सिद्दीकी said...

abhar madan ji,surendra ji