Wednesday, March 25, 2009

शहादत दिवस और देशवासी......

साथियों एक शहादत दिवस और निकल गया मै बात कर रहा हूँ अपने शहीदे आज़म सरदार भगत सिंह की लेकिन हमारे देश की मीडिया को इतनी फुर्सत कहाँ की वो इन शहीदों को श्रधांजलि दे सके वो तो टाटा का सपना छापने में लगे रहे और जो दिखाने का काम करते हैं वो दिखाते रहे और इनको शहीद दिवस से क्या लेना देना जब जनता ही अपने शहीदों याद नहीं करना चाहती तो भला प्रेस क्यों अपनी जेब इनकी वजह से हलकी होने दे जितना पैसा टाटा की नैनो दे रही है उसका प्रचार करने में उतना ये शहीद कहाँ से देंगे और इनको मरने के बाद खबर बनने की क्या ज़रूरत है वैसे भी जितना सम्मान भ्रष्ट नेता समाजसेवियों मिलना चाहिए वो तो उनको मिल ही रहा है और देश के लूट घसोट में जितना सहयोग ये बिरादरी करती है उतना कौन करता है इस लिए शहीदों की खबर बना कर क्या इनसे पंगा लेना है और अब जब बापू को भी वरुण जैसे ऐरे गैरे गरिया सकते हैं और मीडिया उनको छाप और दिखा कर माल बना रही है तो इन देश भक्तों को को दिखा कर क्यों मज़ा किरकिरा किया जाये वैसे भी अंधी गूंगी जनता को मसाला मिलना चाहिए चाय और पान की दुकानों पर खड़े हो कर चर्चा करने के लिए उनको इससे क्या मतलब की अतीत में उनके लिए कितनो ने गोलियां खाई कितने फँसी पर झूल गए कितने जिंदा दफ़न हो गए अब देशवासी नेताओं में सबसे भ्रष्ट कौन है कौन देश बेच रहा है ऐसे लोगों को पसंद करने लगे हैं जिनको मीडिया फायर ब्रांड कहता है और यही सेल देश को नफरत की आग में झोक रहे हैं तो दोस्तों कहाँ हमें शहीद दिवस की याद होगी........................
आपका हमवतन भाई ...गुफरान.........अवध पीपुल्स फोरम फैजाबाद.

Saturday, March 21, 2009

लोकतंत्र के पशुबज़ार में स्वागत है.......

विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र में लगने वाले पशु बाज़ार में आपका स्वागत है, यही एक ऐसा लोक तंत्र है जहाँ जनता पशुवों की मानसिकता की है जिनके भाग्य का फैसला हमारे देश के बड़े उद्योगपति करते हैं और ये पशुबज़ार के खरीदार राजनितिक दल इन्ही उद्योगपतियों से चंदा लेकर जनता के वोट की बोली लगाते हैं और जनता भी पशुवों की भांति उनसे भी कम दामों में बिकती रहती है और फिर उन्ही खरीदारों के हांथो जुतियाई भी जाति है पहले ये अपने पशु होने का सबूत देते हैं जब वोट करते हैं तो देश,विकास,बेरोजगारी,शिक्षा,स्वास्थ जो की इनका अधिकार है के विषय में नहीं सोचते तब जाति, धर्म और क्षेत्रवाद जैसे मुद्दों पर ये वोट करते हैं लेकिन जैसे ही सरकार बनती है और जनता के डंडा करना शुरू करती है इनकी इंसानियत जाग जाति है और ये घडियाली आंसू बहाना शुरू कर देते हैं और एक दुसरे को कोसना शुरू कर देते हैं और शुरू होता है आन्दोलन और धरनों का दौर इसमें ये किसी और का नहीं अपना खुद का नुकसान करते रहते हैं लेकिन इससे सबक न सीखते हुए फिर जब चुनाव निकट आने लगता है ये देश विकास समाज सब भुला कर अपने पशुत्व पर लौट जाते हैं और जब इनके सामने कोई ऐसा व्यक्ति चुनाव में ताल ठोकता है जिसके पास सिर्फ कर्म है सत्यता है कर्मठता है तो यही लोग उसे मुर्ख समझ कर उस पर हंसते उसकी जमानत जप्त करते हैं और गुंडों के भ्रष्ताचारिओं के पिछलग्गू बने उनकी जय जय कार करने में ही अपना सर गर्व से ऊँचा रखते हैं तो कुकुरमुत्तों की भांति क्यों ना इस देश में राजनितिक दल हों। जब जाति,धर्म,क्षेत्र के नाम पर जनता वोट करेगी तो पार्टियाँ भी इसी आधार पर बनेगी और पशुबज़ार में खरीदार भी बढ़ेंगे लेकिन इसके बदले जनता को क्या मिलता है ये सवाल ज़रूर एक बेहतर मुद्दा हो सकता है..........,

आपका हमवतन भाई ....गुफरान.....अवध पीपुल्स फॉरम फैजाबाद.

Sunday, March 8, 2009

नारी दिवस पर विशेष...........?

औरत देवी है माँ है बहेन है बेटी है पत्नी है और भी न जाने क्या क्या रूप हैं लेकिन हमारे समाज में क्या ये सुरक्षित हैं हम क्यों नहीं इनको बराबरी का दर्जा देते हैं.? अत्याचार करते हैं, हवस का शिकार बनाते हैं, खरीद फरोक्त तक करतें हैं.? इनकी और कहने को ये हमारे धर्म में देवी का स्थान रखतीं है या यूँ कहें की एक माँ (औरत) के क़दमों के नीचे जन्नत है ये भी ईश्वरीय वाणी है फिर क्यों ये पैदा होते ही मार दी जाती हैं.? क्यों ये जलाई जाती हैं.? शिक्षा से महरूम रहती हैं.? क्यों इनको बराबरी का दर्जा देने के लिए हम आना कानी करते हैं.? इसके पीछे क्या है..? ऐसे बहोत से सवाल हजारों लाखों के दिलो में उठते होंगे लेकिन जवाब शायद किसी के पास नहीं या यूँ कहें की जवाब कभी खोजने की कोशिश ही नहीं की आखिर करते भी तो कैसे कई पीदियों से जिस परंपरा का निर्वहन हम करते आ रहे हैं उसमे इन सवालों के लिए ही गुंजाईश नहीं थी तो जवाब का सवाल ही नहीं पैदा होता लेकिन अब वक़्त के साथ इन्होने चलना सीख लिया है. अगर हम कुछ अपवाद छोड़ दें तो इतिहास गवाह है सैकडों सालों से जो परंपरा चली आ रही थी उसे खुद औरतों ने ही अपने बूते तोडा है लेकिन अब हम सभी को इनके अधिकारों की अनदेखी बंद करनी होगी और औरतों को समाज में अपने से बेहतर दर्जा देना होगा आखिर यही देवी है यही माँ है यही बहन है यही अर्धांग्नी है.और जन्नत का रास्ता इन्ही (माँ) के पैरों के नीचे है.लिखना तो बहोत कुछ था लेकिन समय कम ही इस लिए यहीं बंद कर रहा हूँ इंशा अल्लाह बाद में मुकम्मल करूँगा.आपका हमवतन भाई गुफरान........अवध पीपुल्स फोरम फैजाबाद