Saturday, December 27, 2008

[फिर शहीद हुवे]29/11/08

अनाथ बच्चे बिलखते

माँ बाप खाली दामन तकते,

फिर कोई फूल चमन से

फिर चमन किसी फूल से

आज महरूम हो गया है ,

फिर पड़ी दरारें आपस में

फिर किसी ने उगला ज़हर है,

फिर खेली गयी होली खून की

फिर शहीद हुवे

भगत चंद्रशेखर अशफाक ,

रोको इन दह्शद-गर्दों को

ये देश की अंधी राजनीति के

पेट से पैदा कुछ कीड़े हैं,

देश बेचने वालों के

ये अन्न दाता हैं

जागो भारत की अब

हम टूटने की कगार पर हैं ,

एक क्रांति और पुकार रही है

सुनो इस पुकार को

आज़ाद करा लो देश

आओ एक बार फिर से

हम सिर्फ क्रांतिकारी बने
एक बार फिर से हम

देश में बदलाव के लिए संघर्ष करें......,

apka हमवतन भाई गुफरान(AWADH PEPULS FORUM FAIZABAD)

Thursday, November 27, 2008

अवध पीपुल्स फोरम..


साथियों मै इस ब्लॉग के ज़रिये आप सभी तक फैजाबाद के हम कुछ नवयुवकों द्वारा किये जा रहे प्रयास को बताने की कोशिश कर रहा हूँ ताकि अवध पीपुल्स फोरम को आपका सहयोग एवं मार्गदर्शन बराबर मिलता रहेगा ऐसी हम सभी साथी आशा करते हैं. 17 नवम्बर 08 को हम कुछ लोगों ने फैजाबाद की एतिहासिक धरती से एक ऐसा प्रयास करने की कोशिश की है जिससे हम अपनी संस्कृति को फिर से जीवित करें,बाल शिक्षा के ज़रिये अपने आने वाले कल को सुरक्षित और मज़बूत बनायें, नशा, पलायन जैसी समस्या को रोकने और रोजगार के प्रति लोगों को सचेत करें तथा हमारे बीच हो रही दूषित और स्वार्थी राजनीति में बदलाव का प्रयास करें l

अवध पीपुल्स फोरम.....

ंयोजन समिति प्रथम बैठक का मिनट्स
22 नवम्बर 2008/ रेलवे कालोनी, फैजाबाद

1। शहर में काम की शुरुआत शहर को समझने के उद्देश्य से व्यापक स्तर पर शोध होगा l जिसको साथी गुफरान सिद्दीकी, शफीक साथियों के सहयोग से इस काम को करेंगे l
२.फैजाबाद एवं आस पास के एतिहासिक महत्त्व और साम्प्रदायिकता के सवाल पर फोरम की और से पर्चा निकला जायेगा। इस काम को करने में शहर के वरिष्ठ साथियों की मदद ली जायेगी।
३। जो बच्चे पढाई से दूर हैं और विभिन्न सार्वजानिक स्थानों पर काम कर रहे हैं उनको पढाई से जोड़ने के लिए शहर के सिविल लाइन,रेलवे स्टेशन,बस स्टाप और नवीन मण्डी में काम करने वाले बच्चों की सूचि बना कर उनको शिक्षा से जोड़ने का प्रयास किया जायेगा सूचि तैयार करने की ज़िम्मेदारी साथी गुफरान सिद्दीकी,इरफान और गुड्डू ने ली है.साथ ही साथ बच्चों के बचपन पर एक कविता छाप कर बँटा जायेगा.
४.समय-समय पर राजनीति एवं सामाजिक समझ का विकास करने के लिए फोरम की और से मुद्दे आधारित कार्यशालाओं का आयोजन किया जायेगा. दिसम्बर की मासिक बैठक में इस पर बात होगी l
5।संस्कृति पहेल करने के उद्देश्य से साथियों की सूचि तैयार कर नाटक एवं गाने की कार्यशालाओं का आयोजन किया जायेगा।6.सफाई के मुद्दे पर 26 जनवरी को ध्यान में रखते हुए कार्यक्रम बनाया जायेगा l छेत्रों का चुनाव कर सुचना के अधिकार का प्रयोग करते हुए कर्मचारियों की सूचि एवं उपस्थिति की जानकारी मांगी जायेगी l
7. चार अलग-अलग स्थान (चांदपुर-अफज़ल/शफीक, पहाड़गंज-गुड्डू, सिविल-लाइन-अशोक और छावनी-राजू/आशीष) साथियों के साथ स्थानीय स्तर पर बैठकों का आयोजन किया जायेगा l
8.जो भी लोग फोरम के साथियों के संपर्क में आएंगे उनकी सूचि तैयार की जायेगी.इसकी ज़िम्मेदारी संयोजन समिति की होगी l
9।फोरम के तमाम कामों को करने के लिए आने वाले खर्च के लिए समुदाय एवं सभी काम करने वाले साथियों से चंदा लिया जायेगा।
10।फोरम की मासिक बैठक का आयोजन प्रत्येक माह के तीसरे शनिवार को 4:00 से 7:00 बजे शाम तक ओ.पी.एस.एकेडमी निराला नगर में होगी lसंयोजन समिति सभी साथियों को इसकी सुचना देगी l
11.फोरम के लिए पत्र व्यव्हार का पता 'मुराद अली पहाड़गंज घोसियाना फैजाबाद-224001'फ़ोन पर संपर्क के लिए 'इरफान-9918069399' तथा इ.मेल के लिए ghufran.j@gmail.com पर साथियों से संपर्क किया जायेगा l



Monday, November 17, 2008

मेरा बचपन.....

साथियों १४ नवम्बर बीत चूका है जिसे हम सभी "बाल दिवस" के नाम से जानते हैं बचपन से आज तक मैंने जिस बचपन को अपने आस पास जिया है उसको अपनी इन पंक्तियों में बताने की कोशिश की है शायद इससे मै उन बच्चों की आवाज़ को उठा सकूँ जिनको पता ही नहीं की बचपन होता क्या है और बाल दिवस क्यूँ मनाया जाता है.
मेरा बचपन
फुटपाथों पर गुब्बारे बेचता मेरा बचपन,
भूख मिटने को भीख मांगता मेरा बचपन,
सड़कों पर फिरता करता बूट्पोलिश मेरा बचपन,
कूड़े के ढेरों पर कबाड़ उठता मेरा बचपन,
साहूकारों के गोदामों में बोझ उठता मेरा बचपन,
सेठों के घरों में झाडू पोंछा करता मेरा बचपन,
रातों को रोता रहता भूखा सोता मेरा बचपन,
टूटे पत्तों जैसा हवा में उड़ता मेरा बचपन,
इक रात जो सोया जाने कहाँ खो गया मेरा बचपन,
आंख खुली तो देखा मैंने बीत चूका था मेरा जीवन...

Sunday, November 16, 2008

हम समाज को बदल सकते हैं....

आदरणीय ,

आज हम जो हालत अपने आस-पास महसूस कर रहे हैं,उसमे सभी प्रकार की मानवीय संवेदनाओं का बहोत तेजी के साथ घटती जा रहीं हैं रोजगार के तमाम पहलुओं पर हमारे सामने प्रश्न चिन्ह लगा हुवा है जो बुनियादी ज़रूरतें हमको अपनी ज़िन्दगी गुजर बसर करने के लिए चाहिए वह नदारत है सत्ता के लोभी बम रुपी दानव की गोद में बैठकर हम पर अपने अस्तित्व को थोपने का प्रयास लगातार कर रहे हैं इन्ही सभी सवालों पर हम सभी लोगों ने कई बार आपसे बात चीत की और तय किया की हम सब मिलकर समाज के तमाम पहलुओं पर लगातार वार्तालाप करेंगे, ताकि समाज के तमाम पहलुओं को भली भांति समझ कर, मिलकर काम करने वाली संस्कृति को बढावा देते हुवे रचनामक नज़रिए के साथ आगे बढा जाय इसी कड़ी में हमने आपसी बात-चीत "अवध पीपुल्स फोरम" के नाम से करना शुरू की है फोरम की ओर से प्रेस क्लब सिविल लाइन फैजाबाद में 17 नवम्बर 2008 को सुबह 09:00 बजे से 05:००
बजे शाम तक आपसी बैठक काम आयोजन किया है l हम अपने संगठन की ओर से आप को आमंत्रित करते हैं की आप 11:00 बजे से 01:00 बजे तक बैठक में शामिल हो सकते हों नवजवानों को किसी तरह से अपने उत्तर दायित्व को समझते हुए शहर me काम करने की शुरुआत करनी चाहिए राय दें हमारा यह मन्ना है की आप शहर को अपने नज़रिए से बेहतर समझते हैं, आपकी समझ हमारे संगठन लिए फायदेमंद होगी l कार्यक्रम में शामिल हो कर बेहतर समाज की परिकल्पना को साकार करने में अपना योगदान दें ल

मै अपने भाई अफाक की बात आप सभी तक पहुँचने की कोशिश कर रहा हूँ अगर ऐसा प्रयास आप भी करें तो हम सभी को लगेगा की हमारी मेहनत सफलता की राह पर है और अगर हमारी कहीं मदद की ज़रूरत पड़े तो हम अपने आपको सौभाग्यशाली समझेंगे आप हमें (ghufran.j@gmail.com) पर संपर्क कर सकते हैं.....भाई अफाक की तरफ से मै गुफरान........

Thursday, October 30, 2008

दलों का दलदल.....

दलों के दलदल में कितने नाम
खास नही कोई सब हैं आम
जात पात धर्म हैं इनके हथियार
लडाई दंगे बदले की ये करते बात
बहुतेरे रंग में रंगी इन सबकी जात
देख कर इनको गिरगिट को आती लाज
भूल गए ये रोटी कपड़ा मकान की बात
भूल गए ये जनता के सम्मान की बात
शिक्षा शान्ति रोजगार इनको नही भाता
रिश्तों के नाम आर इनके न जोरू न जाता
बढाते टैक्स लगाते वैट करके विकास की बात
बदले में देते हमको महगाई स्मारक पार्क की सवगात

Friday, October 10, 2008

क्या है आतंकवाद...........?

पश्चिम द्वारा इजाद किये आतंकवाद (terrorism)नामक शब्द को अब सीधे तौर पर इस्लाम का पर्याय माना जाने लगा है.जबकि मुस्लिम बुद्धिजीविओं से लेकर आम मुस्लिमो तक का मानना है कि तथाकथित आतंकवाद का इस्लाम से कोई लेना देना नहीं आतंकवादी कार्यवाई शरियत के खिलाफ,नाजायज़ और मजम्मत के लायक है.इसलिए इन गतिविधियों में लिप्त लोगों को कड़ी से कड़ी सजा मिलनी चाहिए ऐसी कार्यवाइयों के वजूहात चाहे सही और माकूल ही क्यूँ न हों हिंसा और खून-खराबे की इजाज़त बहर हाल किसी को नहीं दी जा सकती क्योकि यह भी आतंकवाद है.मोटे तौर पर इससे यही समझा जा सकता है कि इस्लाम का आतंकवाद से कोई रिश्ता नहीं है और न ही वह इसकी इजाज़त देता है.हालाँकि इस पूरी बहस में सबसे रोचक बात यह है कि जिस बुनियाद पर पूरी ईमारत खड़ी की गयी है.अभी तक यही तय नहीं हो पाया है कि वह आखिर क्या है....?आतंकवाद कि परिभाषा को लेकर जितने मुह उतनी बातें लेकिन मोटे तौर पर हर वह कार्यवाई आतंकवाद है जिसमे हिंसा (violence)पाई जाती हो,जिसमे खास लोगों के साथ आम लोग(civilian) या गैर जंगजू लोग(non.combatant)भी मारे जाएँ या घायल हों या उनकी धनसम्पदा को नुकसान पहुँचता हो.और ऐसी हिंसात्मक कार्यवाई के लिए किसी कानूनी इदारे से इजाज़त न मिली हुई हो.
लेकिन सवाल ये उठता है कि ये लागू किस पर होता है अगर कुछ लोगो के गलत होने से पुरे संप्रदाय को निशाना बनाना ठीक है तो दुसरे संप्रदाय के कुछ संगठनों द्वारा समय समय पर देश के विभिन्न कोनो में एक धर्म या जाति विशेष का किया गया जनसंहार किस श्रेडी में आता है क्यूँ उसको क्रिया की प्रतिक्रिया बताया जाता है....?(जैसा गुजरात दंगों के विषय में कहा जाता है) उडीसा में विहिप नेता स्वामी लक्ष्मदानंद सरस्वती और चार अन्य लोगों की हत्या नक्सलियों ने कर दी थी.और ये बात सभी को मालूम थी पुलिस पहले ही दिन से ये बोल रही थी लेकिन बी.जे.पी. बजरंगदल विश्व हिन्दू परिषद् जैसे 'कथित देशभक्त' संगठनों ने उडीसा में हिंसा का नंगा नाच शुरू कर दिया.....हत्या, लूट, बलात्कार,और न जाने क्या क्या....!
इन तथाकथित देशभक्त संगठनों के नेता बराबर सरस्वती जी के हत्त्यारों की गिरफ्तारी की मांग करते रहे लेकिन हिंसा को ये कहकर समर्थन देते रहे की इस घटना को ईसाईयों ने अंजाम दिया है और हमारे कार्यकर्ता बदला ले रहे हैं.लेकिन अभी तक जगह जगह चीखते चिल्लाते हिंसा को समर्थन देते इन नेताओं की बोलती बंद है.वजह ये है की उडीसा का सबसे वांछित नक्सली नेता 'सब्यसाची पंडा उर्फ़ सुनील' ने एक निजी न्यूज़ चैनल के द्वारा इस हत्या की जिम्मेदारी ली है.वजह ये बताई की सरस्वती जी वहां सामाजिक अव्यवस्था फैला रहे थे वजह चाहे जो भी हो लेकिन जो हुवा ठीक नहीं हुवा लेकिन इसका ये मतलब नहीं की आप किसी को जिम्मेदार मान कर उस पूरी जाति या धर्म को निशाना बनायें क्या ये आतंकवाद नहीं है. लेकिन अब सवाल ये उठता है कि पंडा उर्फ़ सुनील किस जाति या धर्म से ताल्लुक रखता है और कंधमाल में जो सैकडों इसाई मारे गए और इन तथाकथित देशभक्तों ने औरतों लड़कियों का बलात्कार लिया उनको जिन्दा जलाया क्या वो सब देश-द्रोही थे अब जबकि हत्यारा खुद सामने है तो क्यूँ नहीं उसको पकड़कर सजा देते क्यूँ बेक़सूर देशवासियों का खून बहाया जा रहा है उनकी बहेन बेटियों कि इज्ज़त को तार तर किया जा रहा है क्यों.....?और इन तथाकथित देशभक्तों को याद दिलाना होगा कि चर्चित संत ज्ञानेश्वर हत्या कांड किसने किया किसने करवाया वहां क्यों हिंसा नहीं हुई क्या वहां देश भक्ति सोई थी या डर लग रहा था वहां किसी ने आवाज़ नहीं उठी कोई हिंसा नहीं हुई इस तरह का दोहरा मापदंड क्यों.....?
क्या सिर्फ इसी लिए देश भक्ति जैसे शब्द को गन्दा किया जा रहा है और खुद का हित साधा जा रहा है वैसे हित साधने से याद आया 'अडवानी जी' की पाकिस्तान यात्रा की थोडी चर्चा हो जाये वहां अडवानी जी ने जिन्ना को सेकुलर क्या कह दिया अपने देश अपनी ही पार्टी जिसको हाथ पकड़ कर चलना सिखया और वो संगठन जो उनके ही रहमो करम पर पल रहे हैं ने उनको देशद्रोही तक बना दिया संघ ने तो उनका इतना विरोध किया की बेचारे रो पड़े लेकिन संघ ने ऐसा क्यूँ किया ये समझ से बाहर है शायद ही संघ का कोई बड़ा नेता ये न जानता हो की उनके नेता डाक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी १९३५ में व्यक्तिगत या राजनैतिक स्वार्थों या अवसरवादिता का परिचय देते हुवे मुस्लिम लीग के समर्थन से ही वित्तमंत्री बन बैठे थे डाक्टर मुखर्जी आज भी देशभक्त कहे जाते हैं तो अडवानी जी को माफ़ी मांगने पर मजबूर होना पड़ा क्यों.....?इसी के साथ थोडी चर्चा कर्नाटक की हो जाये वहां धर्मंतारद को मुद्दा बना कर देशभक्त बजरंगियों ने तबाही मचाई हुई है जाँच हुई कहीं भी धर्मान्तरण की पुष्टि नहीं हुई १७ बजरंगी जेल की हवा खा रहे हैं इन सबके बीच कानपूर में एक हादसा हुवा बम बनाते हुवे धमाके में दो लोग मर गए जाँच में पता चले की वो भी तथाकथित देशभक्त संगठन से जुड़े थे पर आज तक ये पता नहीं लग पाया की वो बम क्यों बना रहे थे.और उनका इरादा क्या था.इसी बीच रास्ट्रीय अल्पसंखक आयोग ने बजरंगदल पर प्रतिबन्ध की शिफारिश करके गलत किया..?
गो-हत्या के मुद्दे पर यही कहूँगा कि चमड़े के कारोबार पर प्रतिबन्ध लगा दिया जाये तो गो-हत्या अपने आप बंद हो जायेगी अब सवाल ये उठता है कि देश में चमड़े के बड़े कारोबारी किस धर्म से हैं किसी से ढाका छुपा नहीं है लेकिन उनके खिलाफ बोलने कि हिम्मत कोई नहीं जुटा पा रहा है क्यों...?

क्या हमें इन सवालों के जवाब कभी मिल पाएंगे दोस्तों...............!