Wednesday, May 27, 2009

किस ओर बढ रहा है देश...........,

एकांत में जब कभी देश के विषय में सोचता हूँ तो काफी परेशान हो जाता हूँ जब हम सरकार के आंकडों से इतर देश देखते हैं तो ज़मीन असमान का फर्क नज़र आता है एक तरफ देश विकास की और अग्रसर है तो दूसरी तरफ की हकीक़त कुछ और ही है तेज़ रफ्तार अर्थयुग है तो यहीं भूक और कर्जे से मरने वाले किसान भी हैं कोई छमाही खरबों में कमाता है तो किसी को साल में ३६५ दिन भोजन मिल जाय तो यही बहोत है एक तरफ सैकडों रुपये का फास्ट फ़ूड खाने वाले हैं तो दूसरी तरफ कुपोसड का शिकार बच्चों से लेकर बूढे तक हैं. एक तरफ उच्च शिक्षा के नाम पर लाखों की डिग्रियां खरीदने वाले हैं तो दूसरी तरफ २० रुपये महीना फीस भी नहीं हो पाती की बच्चों को पढाया जा सके एक तरफ शिक्षा का बाजारीकरण है तो दूसरी तरफ सरकारी शिक्षा के नाम पर कालाबाजारी है एक तरफ आरक्षण है नीलाम होती नौकरियां है तो दूसरी तरफ बेरोजगारों की बढती फौज है एक तरफ शोषण है अत्याचार है घूसखोरी है भ्रष्टाचार है तो दूसरी तरफ मरते हुए ईमानदार मेहनतकश हैं आत्महत्या को मजबूर किसान और भुकमरी की कगार पर इनके परिवार और लाचार जनता एक तरफ देश का लोकतंत्र है तो दूसरी तरफ उसका चीरहरण करने वाले राजनितिक दल हैं एक तरफ देश का संविधान है तो दूसरी तरफ उसकी जडों में बैठे ज़हरीले सांप हैं एक तरफ देश का आपसी विशवास है भाईचारा है तो दूसरी तरफ देश के अन्दर ही उसको तार तार करने वाले सांप्रदायिक समूह हैं एक तरफ देश के लिए मरते हुए जवान हैं तो दूसरी तरफ देश के अन्दर लड़ते हुए हिन्दू मुस्लमान हैं एक तरफ बापू का गांधीवाद है तो दूसरी तरफ माओ का माओवाद, आतंकवाद और नक्सलवाद एक तरफ भारतीयता है तो दूसरी तरफ मराठी, बंगाली, तमिल, गुजरती, असमी,और न जाने कौन कौन हैं.......................देश तो आगे बढ रहा है लेकिन किस ओर समझना बहोत मुश्किल है .................
आपका हमवतन भाई ...गुफरान....अवध पीपुल्स फोरम..फैजाबाद...

Friday, May 1, 2009

भारत को खंड खंड करते यहाँ के वासी..................,

जनाब अगर आप किसी भी मुल्क में जाओ और वहां के बाशिंदों से सवाल करो आप कहाँ से हैं तो उसका जवाब होगा .....अमेरिका वाला बोलेगा मैं अमेरिकन हूँ अफ्रीकी बोलेगा अफ्रीकन हूँ अरब बोलेगा अरबी हूँ नेपाली बोलेगा नेपाली हूँ ,,,,,,लेकिन हम जब अपने देश में सवाल करते हैं तो यहाँ हिन्दुस्तानी छोड़ कर सब मिल जाते हैं कोई पंजाबी होता है, कोई मराठी होता है, कोई बंगाली होता है, तो कोई तमिल लेकिन कोई भी हिन्दुस्तानी नहीं होता है आखिर गलती कहाँ की गयी की हम क्षेत्रवाद को देश से ज्यादा महत्व देने लगे क्या किसी ने कभी इस विषय में सोचा या किसी ने इसके लिए कोई ठोस पहेल की शायद ये हिन्दोस्तान का दुर्भाग्य है की आज़ादी की लडाई में जब हमारे हिन्दुस्तानी भाई अपने मुल्क के लिए जाने दे रहे थे तो उनके लिए क्षेत्रवाद नहीं अपना देश प्यारा था यहाँ हिन्दू मुस्लिम सिख इसाई बोलने वाला कोई नहीं था सब भारतीय थे लेकिन आज़ादी मिलने के बाद यहाँ शुरू हुवा लोकतंत्र की खरीद फरोक्त का खेल पहले एक नारा आया हिन्दू मुस्लिम सिख इसाई आपस में हैं भाई भाई .....यहीं से शुरू हुवा इन राजनितिक दलालों का खेल इन्होने सबसे पहले ऐसे सन्देश बनाये की लोगों को ये एहसास हो की भारत अब आजाद हो चूका है और यहाँ अलग अलग धर्मो के मानने वाले रहते हैं जिनका रहेन सहेन सब अलग हैं और ये एक दुसरे के साथ नहीं रह सकते हम इनको साथ रहना सिखायेंगे और फिर हर धर्म का दलाल अपने आप को उस कौम का नेता बताने लगा और फिर शुरू हुवा अधिकार दिलाने के नाम पर आपसी भाईचारे को बीच बाज़ार नंगा करने का खेल यहाँ तक तो फिर भी ठीक था लेकिन जब राजनीति ने व्यवसाय का रूप लेना शुरू किया तो इन दलालों को अपनी कौम को बेचने में मोती कमी होने लगी और फिर शुरू हुवे सांप्रदायिक दंगे आज तक इन दंगों में इन दलालों का कोई भी करीबी नहीं मारा गया न ही इनकी संपत्ति का कोई नुकास्सन ही हुवा मारा कौन गया बर्बाद कौन हुवा बताने की ज़रूरत नहीं और आज देखिये हम किस जगह खड़े हैं हम दावे करते हैं की हम जल्द ही विकसित राष्ट्र बन जायेंगे लेकिन कैसे कोई बताने को तैयार नहीं हमारे देश में लोग क्षेत्रवाद की बातें करते हैं अपने राज्य से बाहरी (दुसरे राज्य) से आये हुवे लोगों को मार मार कर भागाते हैं क्यूँ क्या वो हिन्दुस्तानी हैं या फिर वो राज्य अपने आप को एक अलग देश साबित करने पर तुला है! वास्तव में ये एक ऐसी समस्या है जिसका वक़्त रहते इलाज नहीं किया गया तो शायद अखंड भारत कहने वाले लोग ही भारत को खंड खंड करने में सबसे आगे होंगे और बदनाम होंगे कुछ खास तबके के लोग .....अभी हमें लगता है की देश आगे जा रहा है लेकिन कहाँ सही जवाब कोई देना नहीं चाहता हमारे किसान खुदकुशी कर रहे हैं, हमारे नवजवान नक्सली आतंकवादी बन रहे हैं , सरकारी तंत्र रिश्वत खोरों और भरष्ट लोगों के आगे नतमस्तक है , और सर्कार चलाने वाले अपने ही देशवासिओं के लहू से अपने धन के बगीचों को सींच रहे हैं तो साथियों हम कहाँ विकसित राष्ट्र बनने के रस्ते पर हैं...?