साथियों १४ नवम्बर बीत चूका है जिसे हम सभी "बाल दिवस" के नाम से जानते हैं बचपन से आज तक मैंने जिस बचपन को अपने आस पास जिया है उसको अपनी इन पंक्तियों में बताने की कोशिश की है शायद इससे मै उन बच्चों की आवाज़ को उठा सकूँ जिनको पता ही नहीं की बचपन होता क्या है और बाल दिवस क्यूँ मनाया जाता है.
मेरा बचपन
फुटपाथों पर गुब्बारे बेचता मेरा बचपन,
भूख मिटने को भीख मांगता मेरा बचपन,
सड़कों पर फिरता करता बूट्पोलिश मेरा बचपन,
कूड़े के ढेरों पर कबाड़ उठता मेरा बचपन,
साहूकारों के गोदामों में बोझ उठता मेरा बचपन,
सेठों के घरों में झाडू पोंछा करता मेरा बचपन,
रातों को रोता रहता भूखा सोता मेरा बचपन,
टूटे पत्तों जैसा हवा में उड़ता मेरा बचपन,
इक रात जो सोया जाने कहाँ खो गया मेरा बचपन,
आंख खुली तो देखा मैंने बीत चूका था मेरा जीवन...
5 comments:
'बीत चुका था मेरा जीवन' मत कहिए 'बीत चुका था मेरा बचपन' कहिए। आपका अमूल्य जीवन सबको चाहिए।
'उठता' नहीं 'उठाता' के लिए uThataa की जगह uThaataa कीजिए।
सप्रेम,
अफ़लातून
कविता भी अच्छी और ब्लॉग भी अच्छा। जारी रखिए।
assalam alaikum, aap bahut hi achcha kam kar rahe hain.
jazak allah khair.
kabhi fursat ho to deen-dunya ki taraf bhi rukh karen, hamein khushi hogi.
wassalam
allah hafiz
bahut achhe aur marmik tareeqe se aapne kah diya hai gufran bhai, in chand paktiyo me aapne har us vyaqti ko jhankjhor diya hai jiske paas kam se kam aatma hai...jinke paas nahi hai wo kya samjhenge is bachpan ke dard ko.
Great initiative.
I am not sure, how could i help.
It would be great if you could make an entry where objective (in detail) is written.
So that people visiting this blog can understand the reason and their liabilities.
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