
कभी प्रिंट मीडिया अपने आप में देश की एक सशक्त आवाज़ हुवा करती थी लेकिन जब से बाजारवाद हावी हुवा है इनकी पैनी कलम की धार भी कुंद हो चुकी है आज कोई भी अख़बार उठा कर देख लीजिये ये सांडे के तेल से लेकर जादू टोना करने वाले तांत्रिकों के प्रचारों से भरा पड़ा रहता है
इतना ही नहीं ख़बरों को बिना जांचे परखे सिर्फ लोगों से सुन कर ये सनसनी फ़ैलाने का काम भी करते रहते हैं यहाँ तक की कई बार इनको सार्वजानिक रूप से माफ़ी भी मांगनी पड़ती है वैसे जितने भी अख़बार हैं सब अपने आप को देश का नंबर1 अख़बार कहते नहीं थकते कोई सच बेचने का दावा करता है कोई समाज की बुराइयों को प्रमुखता से छपने की बात करता है लेकिन आचरण सभी का कैसा हम सब जानते हैं ख़बरों से ज्यादा इनमे प्रचार होता है और प्रचार भी कैसे बताने की ज़रूरत नहीं देश के युवा वर्ग को गुमराह करने के लिए हर अखबार प्रमुखता से एक प्रचार छापता है मीठी बातें दोस्त बनाइये और न क्या क्या स्लोगन होते हैं लेकिन फिर भी ये कहते हैं की हम देश की आवाज़ हैं क्या देश को सांडे का तेल चाहिए या जादू टोना करने वाले तांत्रिक फ़कीर या फिर मीठी बातें करके दिल बहलाने वाले फ़ोन नंबर चाहिए होते हैं ये सब देश की खातिर छापने पर मजबूर रहते हैं,
इलेक्ट्रानिक मीडिया का बढ़ता दायरा आज जिस तरह से छोटे छोटे दलालों का हथियार बनता जा रहा है उसकी नजीर हम अपने शहर में देख सकते हैं जहाँ ये केबल न्यूज़ लोकल स्तर पर चलाते हैं वहां इनके दलाल जनत का शोषण करते आपको अस्सानी से दिख जायेंगे सोचने वाली बात ये है की जब छोटे स्तर पर ऐसा है तो प्रदेश और राष्ट्रीय खबरिया चैनलों का क्या होगा ये जिस तरह से ख़बरों को सनसनी में बदलते रहते हैं उससे ये कौन सी क्रांति लाना चाहते हैं समझ से परे है हाँ ये ज़रूर है है की जिस तरह से इलेक्ट्रोनिक मीडिया का आगाज़ हुवा था उसको देख कर ये ज़रूर लगा था की अब देश के भ्रष्ट राजनेता, अधिकारीयों की जमात की खैर नहीं लेकिन जैसे जैसे वक़्त बदला सब कुछ सामान्य हो गया देश की ये जमात भी अब सास बहु के धारावाहिकों की तरह बन कर रह गया कुछ चैनल तो ऐसे हैं जो सिर्फ गोसिप पर चल रहे हैं ये खबरिया चैनल न हो कर मनोरंजन का साधन मात्र बन कर रह गए हैं.
3 comments:
बेहतरीन लिखा , एक एक का कच्चा चिठ्ठा उजागर कर दिया ।
जिस प्रकार लोकतंत्र का चौथा खम्भा बिक रहा है या बिक गया है उसे देख कर तो यही लगता है कि यह पुंजीपतियो के लिये एक रक्षा कवच बन गया है ।
काले सच को उजागर करता हुआ एक सकारात्मक ब्लाग , लिक से हट के न्याय के लिये आह्वावन करता यह ब्लाग बेहद ही उम्दा है और आंखे खोलने वाला है ।
जागो , और असलियत को पहचानो ।
जय हिन्द
लेख अच्छा लगा । आज के समय में पत्रकारिता ही लोगो की आवाज हो सकती है है लेकिन यह अफसोस की बात है कि पत्रकारिता ने अपना रास्ता बदल लिया है । यह पूर्णत: व्यापारिक हो गयी हैं। शिशिर शुक्ला
sach sabhi jantai hai per sach ko likhnai ki himmat sabhi mai nahi hoti. u hi aawaj buland karo akelai nahi hai aap chaliyai to sahi karvan apnai aap ban jaega.
naveen tripathi
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