Monday, August 17, 2009

किसकी अयोध्या..............!

अयोध्या
मेरे नाम का अलग अलग मतलब निकालने वालों मेरी भी पुकार को सुनो मेरे रक्तरंजित ह्रदय से नकलने वाली वाली पीडा क्या तुमको सुनाई नहीं देती मेरी माटी में जन्मे और मेरी गोद में सोये हुए शांति के दूत तुमको दिखाई नहीं देते मेरी गोद में बढे पुरषोत्तम राम हो या महावीर स्वामी या फिर शीश अलाह्सलाम हों या फिर स्वयं भगवान् की उपाधि पाने वाले बुद्ध इन सबको मै ही क्यों रास आई आखिर क्या था मेरे अन्दर की संसार के कोने कोने से शांति पाने के लिए लोग मेरी आंचल की छावं में आते गए और मुझे महानता की उचाइयों पर पहुंचा दिया.सारा संसार मेरी आंचल की छावं में मुझे लगने लगा साफ़ शफ्फाक आंचल जिसमे गुनाह यूँ धुल जाया करते की मानो कोई माँ अपने नन्हे से बच्चे की गन्दगी अपने आंचल से साफ़ करके उसे पवित्र कर देती हो.मुझे याद नहीं मैंने कब किसी से भेदभाव किया या किसी से अपनी माटी का मोल माँगा जो भी आया मैंने उसको माँ बनकर अपनी गोद में समेट लिया उनके दुःख दर्द को अपना लिया मेरे घर के आंगन में इश्वर, पवित्रता का पाठ पढने वाले ज्ञानी सन्यासी संसार को शांति का सन्देश देने वाले सूफी महात्माओं को भेजा और सभी मिलकर मुझे संसार में एक अलग पहचान देते रहे.....फिर ऐसा क्या हुवा की मेरे बच्चे मेरी छावं से अलग जाने लगे और मुझे संसार में पवित्रता की ऊँचाइयों से निचे घसीटते से प्रतीत हुए मेरे स्वभाव में आज भी वही अपनापन लेकिन आज मेरा आंचल मुझे रक्तरंजित सा दिखाई देता है जिसमे न जाने मेरे कितने बच्चों का लहू लगा हुवा है आज मुझे अपना कहने वाले अलग अलग पंक्तियों में खड़े हैं सब ही मेरे बच्चे हैं लेकिन सब साथ मिल कर मुझे नहीं अपना रहे.........सिर्फ अपना हक जताने के लिए खून की होलियाँ खेल रहे बच्चों को देख कर मुझे रोना आता है अब संसार में मेरी पहचान साम्प्रादायिक बन कर रह गयी है मेरा नाम आते ही लोगों के ज़हन में मेरा स्वरुप एक ऐसी अयोध्या के रूप में बनता है जहाँ इन्सानिअत का कत्ल हो चूका है.....और मेरे नाम का व्यापार हो रहा है..

2 comments:

Randhir Singh Suman said...

thik hai

संदीप said...

गुफरान भाई, अयोध्‍या की इस पीड़ा को कट्टरपंथी नहीं समझेंगे....हां, जो मानवता को बचाना चाहते हैं, वही इस पर सोच सकते हैं और क़त्‍लेआम के विरुद्ध एकजुट हो सकते हैं...
संदीप

बर्बरता के विरुद्ध