सोचता हूँ की इस ईद पर क्या करूँ
बेरोज़गारी की जेब से कैसे खर्च करूँ,
कुछ देर लिखता हूँ फिर रुक जाता हूँ
सोचता की इस ईद पर क्या करूँ,
ख़ुशी भी अजीब सी लगती है ईद की
लाशों ढेरों से लिपटा मेरा देश है,
आँखों से अश्क नहीं टपकता लहू है
हर किसी के हाथ में कफ़न है दोस्तों,
अजीब सा मंज़र है हर किसी दिल का
हर किसी के चेहरे पे एक खौफ सा है,
सोचता हूँ की इस ईद पर क्या करूँ
बेरोज़गारी की जेब से कैसे खर्च करूँ,
आपका हमवतन भाई ,,गुफरान (अवध पीपुल्स फोरम फैजाबाद),
8 comments:
बहुत बढिया लिखा है .. आज की स्थिति को देखते हुए चिंता स्वाभाविक है !!
बहुत बढिया लिखा है...
गुफ़रान भाई, आदाब. शुक्रिया आपका स्वच्छ सन्देश पर आने का. उम्मीद करता हूँ कि आप आते रहेंगे. आप भारत के उन 60 करोड़ आबादी का प्रधिनिधित्व करता हूँ जिसे आप लोग बेरोजगार पुकारते हैं.. अच्छा है...
This is great one !!!
आपकी रचना आपके साकारात्मक विचारों को परिलक्षित करती है | संसार में व्याप्त समस्याओं और उससे उपजी मानसिकता का सुन्दर चित्रण किया है आपने |
बधाई स्वीकार करें ....
उम्मीद है आगे भी पढने का मौका मिलेगा |
gufraan ji...kya khoob kaha aapne
kya waqai log apne tyohaar ki khushi chhod doosro ke baare mein aise sochte hain...
मै आप सभी का तहे दिल से शुक्रिया अदा करता हूँ और कोशिश करूँगा की हमेशा ऐसे ही लिखता रहूँ और संगीता दीदी आप जब भी मेरे ब्लॉग पर कमेन्ट लिखती हैं मुझे बहोत हिम्मत मिलती है,
आपका हमवतन भाई गुफरान (अवध पीपुल्स फोरम फैजाबाद)
mohammad gufran ass/alaikum, aap ne jo eid per logo ko massage diya bahot acha hein, aap u hi hi apne vichar logo tak pahuchate rahe, meri dua aap ke sath he,
mohammad naseem KSA
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